रविवार, 13 मई 2012

ये दिन है नया, नया दौर नहीं ?

ये दिन है नया, नया दौर नहीं ?
जो आज है यहाँ, कभी और नहीं ?
यही थी जीवन पतंग, थी साँसों की डोर यहीं,
पर बहुत कुछ बदला है, जो किया हो गौर कहीं ?
अरमानों की सौ तस्वीरें, हसरतों का था छोर यहीं ,
सपने थे नैना भर भर , उमंगों का था शोर यहीं |
कल और थी चाहत, आज कुछ और सही,
तो कहो ये सच है या नहीं,
ये दिन है नया, नया दौर नहीं ?

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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