शनिवार, 12 मई 2012

जितना भी जलें , साथ जलें |

एक नदी की है आस मुझे ,
जो बुझा दे ,
प्रेम की जो है प्यास मुझे |
जो बेल बने , बाँध ले ,
मुझे आज अपनी चोटी से |
जो चाबी बने , आज़ाद करे ,
मुझे दुनिया की मुट्ठी से |
साथ जिसका, जीने का एहसास बने ,
पवित्र हो रिश्ता, मंदिर समान,
और नींव अटूट विश्वास बने |
वो छाँव बने, वो नाव बने ,
जीवन दरिया भर साथ चले |
मैं दिया बनूँ, वो बाती बने,
आत्मसात हो आज हम,
जितना भी जलें , साथ जलें |

- अक्षत डबराल

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