मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

आँखों कि माचिस |

मेरी आँखें , माचिस कि डिबियाँ ,
तेरे ख्वाब , हैं इसकी तीलियाँ |
हर किस्म , हर ढंग में हैं ,
कुछ सादी सी , कुछ फुलझड़ियाँ |

उजाला होता आँखों में जब,
तू सजाती मुस्कान कि लड़ियाँ |
मैं ढूंढता फिर सिरे इनके ,
जोड़ता इनकी आपस में कड़ियाँ |

हर रोज़ तुझे पाने का ,
यही है मेरे पास एक जरिया |
मेरी आँखों कि माचिस ,
और तेरे ख़्वाबों कि तीलियाँ |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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