सोमवार, 18 अप्रैल 2011

जीवन

जीवन क्या है, एक बेल नहीं ?
चढ़ाई , उतरन है हर दिन ,
कुछ आसान , कुछ खेल नहीं ?
कांटे , फूलों के गुच्छे हैं ,
इनका इससे अच्छा कहीं मेल नहीं ?
हमेशा ही उड़ता पंछी कहाँ ,
क्या ये भी कभी एक जेल नहीं ?
पटरियां बिछी हैं हर जगह ,
भागती , सरकती ,
क्या ये भी एक रेल नहीं ?

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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