शनिवार, 13 नवंबर 2010

कहाँ से लाऊं ?

कुछ कसक सी है सीने में,
इसकी दवा कहाँ से लाऊं ?

मुझे लिखने का मर्ज़ है ,
लिखता हूँ जब तक दर्द रहे |

ये ज़िन्दगी ही वजह है इनकी ,
कोई और वजह कहाँ से लाऊं ?

वक़्त चलता रहता है ,
जैसे पानी बहता रहता है |

जों भी है बस अभी है ,
दूजा वक़्त कहाँ से लाऊं ?

ख्यालों के भी कुछ तिनके ,
डूबते उतरते रहते हैं जेहन में |

दरिया एक है , ख्याल बहुत ,
एक और जेहन कहाँ से लाऊं ?

मंज़िल एक है , राह कई ,
लेकिन केवल एक सही |

सही है पर बहुत मुश्किल ,
आसान कहाँ से लाऊं ?

उड़ने की चाह है मुझे ,
पंख तो उगा लिए हैं मैंने |

उड़ान भरने को लेकिन खुला ,
आसमान कहाँ से लाऊं ?

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

तुम कौन हो ?

ठण्ड की गर्म धूप हो तुम ,
या नदी की मस्त लहर ?
मुंडेर की पगडण्डी हो या ,
मनमौजी टेढ़ी नहर |

चांदनी हो सकती हो तुम ,
पर इतनी उसकी लौ नहीं |
सपनों में मुझे बुलाता है जों ,
क्या तुम ही हो , कोई और नहीं ?

खुशबू का झोंका हो तुम ,
या बारिश का छींटा हो ?
अनकहा अरमान हो कोई ,
जों उम्मीद पे ही जीता हो ?

डर से छुपायी बात हो तुम ,
या गुनगुनाया गीत कोई ?
अनजाने से दिखते हो ,
या लगते अपने मीत कोई ?

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

सोमवार, 1 नवंबर 2010

बात चली

आगे रात चली , पीछे बात चली |
रात रात भर , बात बात में ,
साथ साथ में , कोई बात चली |

राज रानी की , आग पानी की |
कही अनकही , नयी पुरानी की |
ले अपने रंग सात चली ,
रात रात भर , बात बात में ,
साथ साथ में , बात चली |

कुछ अपनों की , कुछ सपनों की |
कुछ किस्सों की , कोई कहानी की |
ले यादों की बारात चली ,
रात रात भर , बात बात में ,
साथ साथ में , बात चली |

ओस की बूँदें , आँखें खुली - मूंद के |
उनमें कुछ खोकर , कुछ ढूंढ के |
दे कोई सौगात चली ,
रात रात भर , बात बात में ,
साथ साथ में , बात चली |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"