शनिवार, 30 जनवरी 2010

पर चलता हूँ ....

जाने कितना मेरा सफ़र है ,
दिन का ये कौन सा पहर है ?
जग, नींद से अंख मलता हूँ ,
थकता हूँ, पर चलता हूँ |

कभी रेत से पाँव हैं जलते ,
कभी ठण्ड से कांप न थमते ,
कभी बिजली से लड़ता हूँ ,
थकता हूँ , पर चलता हूँ |

कुछ एक हमसफ़र मिले ,
उनसे हँस मिलता हूँ |
रस्ते अलग हो ही जाते हैं ,
रोता हूँ , पर चलता हूँ |

ख्वाब देखा था कभी ,
बहुत आगे जाने का ,
उसी ख्वाब के लिए जलता हूँ ,
रुकता हूँ , पर चलता हूँ |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

सोमवार, 25 जनवरी 2010

आज साथ साल हुए पूरे ,
आओ संकल्प लें, खतम होंगे काम अधूरे |
शान्ति बसेगी भारत वर्ष में ,
अलग होगी सूरत अगले बरस में |

पर सिर्फ शब्दों से दुनिया नहीं चलती,
बिना आग के तो मोम भी नहीं गलती |
कुछ न कुछ करो ,
यूँही बातों से कोई क्रान्ति नहीं चलती |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

गुरुवार, 7 जनवरी 2010

फलक देख !

क्यूँ देखता है जमीं को ?
नज़र उठा फलक देख !
क्या तपता , चमकता सूरज है ?
सर उठा , झलक देख !

हार मानकर बैठा है क्यूँ ?
चीटीं को जीतने की ललक देख !
औरों को मुश्किल नहीं क्या ?
उनकी उम्मीदों भरी पलक देख !

गिलास खाली नहीं , आधा भरा है क्या ?
कभी दुनिया से अलग देख !
कभी जला है जुनून की आग में ?
खुद पर जगा के अलख देख !

क्यूँ देखता है जमीं को ?
नज़र उठा फलक देख !
नज़र उठा फलक देख !

अक्षत डबराल
"निःशब्द"