सोमवार, 7 दिसंबर 2009

क्योंकि वह गरीब आदमी है ...

हाँ , उसका दबना लाज़मी है ,
क्योंकि वह गरीब आदमी है |
उसका बचपन ही बुढापा है ,
उसकी न कोई जवानी है ,
क्योंकि वह गरीब आदमी है |

बेबस, लाचार ज़िन्दगी ,
छलनी तार तार ज़िन्दगी |
जीना तो मुश्किल है ,
मरने में आसानी है ,
क्योंकि वह गरीब आदमी है |

कितने कितने खवाब सजाता ,
कितनी उम्मीद लगाता |
पर उसकी गुहार कब सुनी जानी है ?
सूनी सी आँखें उसकी , खाली ही रह जानी है |
क्योंकि वह गरीब आदमी है |

दुनिया बहुत आगे बढ़ गयी ,
उसकी कहानी वही पुरानी है |
चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता ,
क्योंकि वह गरीब आदमी है ,
क्योंकि वह गरीब आदमी है |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

4 टिप्‍पणियां:

  1. अक्षत ,आपकी कविता जितनी अच्छी है ,आपकी फोटो उतनी ही खराब ,सबसे पहले तो आप फोटो बदलें क्योंकि यह मर्यादा के अनुरूप नहीं है और साहित्यकार को हमेशा मर्यादित होना चाहिए ,छोटा भाई मान कर कह रही हूँ

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  2. aapki baat maan li,

    aasha karta hun ab sab uchit lag raha hoga |

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  3. IT employee also fits wll in place of garib aadmi

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