बुधवार, 23 सितंबर 2009

आज आओ , हम तुम मिलें ,
मिलकर एक साज़ लिखें |
चुन चुन प्रेम के शब्द जड़ें ,
कोई भूली बिसरी बात लिखें |

ढलते सूरज से तुम ,
थोडी सी लाली चुरालो |
सपने सजे जों आँखों में ,
हौले से उसमें मिलादो |

मैं शाम को रोके रखता हूँ ,
तुम मद्धम गजलें कहती रहो |
अब न रुको , न थमो तुम ,
बस बहो , बहती रहो |

लहरों की जों तरंग है , फागुन की जों उमंग है ,
सब समेट लेंगे अपने में |
भावों की ये आंधी है ,
आएगी कलम में , सपने में |

ईद जैसा इंतज़ार है ,
हुज़ूर आयें, दिखें |
ले रंग बिरंगी स्याहियां ,
मिलकर एक साज़ लिखें |

अक्षत डबराल

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