शनिवार, 16 मई 2009

स्वीकार कर |

खींच अपनी भुजाओं की शक्ति ,
आज एक हुंकार भर |
चुनौती आई है युद्घ की ,
भर सीना , स्वीकार कर |

वीर कौशल की कहानियाँ ,
सुन ली होंगी बहुत |
एक कथा और विजय की ,
लिख दे अब ख़ुद |

यह विशेष समय है ,
यूँ न बेकार कर |
परीक्षा की घड़ी है ,
ध्यान लगा , स्वीकार कर |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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