रविवार, 24 मई 2009

यह बसंत कैसे आई है ?

क्या आज दिन कुछ ख़ास है ?
हवा में गज़ब की ताजगी ,
और घुलती जा रही मिठास है |

आसमान ज्यादा नीला है शायद ,
और धूप में गुनगुनापन है |
सडको के गड्ढों में इत्र फुलेल भरा है ,
किसलिए यह इंतजाम करा है ?

पेडों पर अचानक बहार आ गई ,
बह रही पुरवाई है |
देखो दूर कहीं से ,
मधुर ध्वनी आई है |

फूल खिल उठे हैं सैकडों ,
भंवरें की मौज आई है |
अभी तो कुछ और मौसम था ,
यह बसंत कैसे आई है ?

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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