मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

चक्रव्यूह नही रचा है |

जलता रह लौ बनकर तू ,
अभी तुझमें मोम बचा है |
मुश्किलें हैं यह छोटी - मोटी ,
कोई चक्रव्यूह नही रचा है |

ऊपर उठ इच्छाओं से ,
इनमें क्या कुछ कभी धरा है ?
विजय निश्चित है तेरी अब ,
जब तुझमें अदम्य साहस भरा है |

कितने - कितने तूफ़ान आए ,
तू अकेले सब सह गया |
अब क्यूँ घबराता है जब ,
लक्ष्य थोड़ा दूर रह गया |

खत्म ही होने को है युद्घ ,
तू अकेला ही बचा है |
जीत कर सब भेंट दे उनको ,
जिन्होंने तेरा रस्ता तका है |

विजयी हो , फिर नाम का तेरे ,
देख डंका बजा है |
मुश्किलें हैं यह छोटी - मोटी ,
कोई चक्रव्यूह नही रचा है |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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